इंकार के पहलू में है इंकार कम-ओ-बेश दीवार के आगे भी है दीवार कम-ओ-बेश दुश्मन से रहा बरसर-ए-पैकार मैं तन्हा सब अपनी बचाते रहे दस्तार कम-ओ-बेश ये मुल्क हुनर वालों के हक़ में नहीं साहिब ग़ुर्बत में यहाँ मरते है'' फ़नकार कम-ओ-बेश महके हुए अज्साम में रहता हूँ हमेशा रहती है मिरे चार-सू महकार कम-ओ-बेश ये शहर किसी ख़ौफ़ में रहता है मुसलसल इस शहर के खुलते नहीं बाज़ार कम-ओ-बेश मैं देखने में दोस्त परिंदों की तरह हूँ अब मुझ से गले मिलते हैं अश्जार कम-ओ-बेश अब सुब्ह से 'मन्नान' नहीं मिलना मिलाना अब देर से होता हूँ मैं बेदार कम-ओ-बेश