इंक़िलाब-ए-सहर-ओ-शाम की कुछ बात करो दोस्तो गर्दिश-ए-अय्याम की कुछ बात करो जाम-ओ-मीना तो कहीं और से ले आएँगे मय-कशो साक़ी-ए-गुलफ़ाम की कुछ बात करो ग़ैर की सुब्ह-ए-दरख़्शाँ का तसव्वुर कब तक अपनी कजलाई हुई शाम की कुछ बात करो फिर जलाना मह-ओ-ख़ुर्शीद की महफ़िल में चराग़ पहले अपने ही दर-ओ-बाम की कुछ बात करो क्या ये टूटे हुए पैमाने लिए बैठे हो बादा-नोशो सितम-ए-आम की कुछ बात करो ज़िक्र-ए-फ़िर्दौस-ओ-इरम कल पे उठा रखते हैं आज तो आरिज़-ए-असनाम की कुछ बात करो मैं तो ख़ैर अपनी वफ़ाओं पे हूँ नाज़ाँ लेकिन वो जो तुम पर है उस इल्ज़ाम की कुछ बात करो तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन से कहीं ग़म धुलते हैं ज़ालिमो तल्ख़ी-ए-अय्याम की कुछ बात करो इतना सन्नाटा कि एहसास का दम घुटता है सुब्ह का ज़िक्र करो शाम की कुछ बात करो वही 'अरशद' कि जलाता है जो आँधी में चराग़ हाँ उसी शाइ'र-ए-बदनाम की कुछ बात करो