आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए हल्क़ा-ए-तंहाई से वो लोग बाहर आ गए साएबाँ ने तपते सूरज से मिलाई क्या नज़र अन-गिनत सूरज मिरे कमरे के अंदर आ गए क़ैंचियों को फिर नए सर से मिलेंगे मश्ग़ले फिर उड़ानों के लिए बाज़ू में शहपर आ गए वहशतों की दाद को मुहताज ही रहते मगर इस हवेली से गुज़रना था कि पत्थर आ गए मिशअल-ए-राह-ए-मोहब्बत हैं मिरे नक़्श-ए-क़दम जिन पे चल कर मंज़िलों तक आज रहबर आ गए इश्क़ की पाबंदियाँ बेकार हो कर रह गईं हम तसव्वुर में किसी के होंट छू कर आ गए आइने अल्फ़ाज़ के 'सुल्तान' करते हैं कमाल बल जबीनों पर पड़े हाथों में ख़ंजर आ गए