इंसाँ हूँ मैं भी मुझ से ये कब पूछते हैं लोग जब पूछते हैं नाम-ओ-नसब पूछते हैं लोग मेरी तबाहियों में बराबर के हैं शरीक फिर क्यों तबाहियों का सबब पूछते हैं लोग कैसे मैं बच के आ गया ये पूछते नहीं कश्ती के डूबने का सबब पूछते हैं लोग मुनकिर नकीर बन के खड़े हैं हर एक सम्त बंदा है किस का कौन है रब पूछते हैं लोग वजह-ए-फ़साद कौन था किस को सज़ा मिली क्यों जल गए मकान ये अब पूछते हैं लोग तन्हा खड़ा हूँ शहर के बाज़ार में 'रज़ा' किस हाल में हूँ कौन हूँ कब पूछते हैं लोग