इंसाँ के कितने रूप हैं रू-ए-अना से पूछ साज़-ए-ग़रज़ से मस्लहत-ए-ख़ुशनुमा से पूछ तेरे सफ़र की राह में कितने सराब हैं मेरी निगह से पूछ मिरे नक़्श-ए-पा से पूछ कितने हैं साँप हुजरा-ए-इख़लास में न गिन मैली रिदा से पूछ दरीदा क़बा से पूछ इक सिर्फ़ तेरे क़स्र पे बिजली गिरी थी क्यूँ मत पूछ उस के अद्ल से अपनी ख़ता से पूछ क्या क्या मिला है ज़िंदगी-ए-बे-सबात से कलियों से पूछ गुंचा-ए-रंगीं-अदा से पूछ आसी की क्या शनाख़्त है मा'सूम की है क्या ये बात बारगाह-ए-सज़ा-ओ-जज़ा से पूछ इतनी कड़ी थी धूप तिरे रास्ते में क्यूँ 'हादी' ये आज ख़ालिक़-ए-कर्बोबला से पूछ