छुट के ये क़ैद-ए-मकाँ से ला-मकाँ तक जाएगी बहर-ए-दिल की मौज बहर-ए-बे-कराँ तक जाएगी इक ज़रा महमेज़ कर फिर देख इस के बाल-ओ-पर फ़िक्र की परवाज़ बाम-ए-आसमाँ तक जाएगी चुपके चुपके ही भड़क उठेंगे जब अंदोह-ए-ग़म चुपके चुपके आँच भी क़ल्ब-ए-तपाँ तक जाएगी तुम जलाओ तो सही रासिख़ यक़ीं की मिशअलें जुरअत-ए-दिल वादी-ए-अज़्म-ए-जवाँ तक जाएगी पूछता फिरता हूँ मैं हर राह से दीवाना-वार ज़ीस्त आई है कहाँ से और कहाँ तक जाएगी मैं ख़ुलूस-ए-दिल से 'हादी' जब पुकारूँगा उसे हर सदा-ए-नातवाँ उस के मकाँ तक जाएगी