इंतिहा ज़ोफ़ की है साफ़ नुमायाँ मुझ से रमक़-ए-जाँ में मिरा जिस्म है पिन्हाँ मुझ से शोर है वो न वहाँ और न यहाँ वो सुनसान शहर वीरान है आबाद बयाबाँ मुझ से बस-कि मुश्किल को समझ रक्खा है मैं ने आसान मुश्किलें करते हैं हल अपने ख़ुद आसाँ मुझ से दामन-ए-दश्त है और फिर मिरा पा-ए-वहशत फिर हुआ जोश-ए-जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ मुझ से शब-ए-तन्हाई में 'बेसब्र' ब-क़ौल-ए-'ग़ालिब' साया ख़ुर्शेद क़यामत में है पिन्हाँ मुझ से