इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं कोई आईना तिरा आज मुक़ाबिल भी नहीं कौन से गुल की ख़बर बाद-ए-सहर लाई है सेहन-ए-गुलशन में कहीं शोर-ए-अनादिल भी नहीं जाने अब कौन सी मंज़िल में में अरबाब-ए-जुनूँ दूर तक दश्त में आवाज़-ए-सलासिल भी नहीं तीर आते हैं कमीं-गाह से मेरी जानिब मेरी तक़दीर में क्या जल्वा-ए-क़ातिल भी नहीं तुझ से और चश्म-ए-तवज्जोह का गिला क्या मा'नी तेरा फ़ितरत तिरे इख़्लास के क़ाबिल भी नहीं