जी चाहेगा जिस को उसे चाहा न करेंगे हम इश्क़ ओ हवस को कभी यकजा न करेंगे ऐ काश छुटें अहद-शिकन बन के जहाँ में बाज़ आए वफ़ादारी का दावा न करेंगे गो हुस्न-परस्ती न हो ख़ातिर से फ़रामोश ख़ुश-क़ामतों का याद सरापा न करेंगे नर्गिस की शब-ए-तीरा में लूटेंगे बहारें पर सुर्मगीं आँखों की तमन्ना न करेंगे बहलाएँगे सैर-ए-गुल-ओ-शबनम से दिल अपना उस आरिज़-ए-गुल-रंग की पर्वा न करेंगे अँगारों पे लोटेंगे पर उन शोला-रुख़ों के नज़्ज़ारा से हम आँख भी सेंका न करेंगे इस्मत का उन्हें ख़ौफ़ है तक़्वा का हमें पास ने की है कभी ख़्वाहिश-ए-बेजा न करेंगे बकने के 'शहीदी' के बुरा मानियो मत जान हैं आशिक़-ए-सादिक़ कभी ऐसा न करेंगे