इक़रार की सूरत थी न इंकार की सूरत देखी न गई मुझ से मिरे यार की सूरत सब मजमा-ए-आशुफ़्ता-सराँ देख रहे थे मैं तकता रहा आइना-बरदार की सूरत कुछ दिन के लिए क़ाफ़िला-ए-ख़ुश-नज़राँ भी गर्दिश में रहा गर्दिश-ए-पर्कार की सूरत वो शहर जो रौनक़ था जहान-ए-गुज़राँ की लगता है मुझे वादी-ए-पुर-ख़ार की सूरत मैं दश्त-ए-तमन्ना का मुसाफ़िर हूँ मुझे भी इक साया मिले साया-ए-दीवार की सूरत अब तक मिरी आँखों में हरारत है वफ़ा की देखी थी कभी कूचा-ए-दिलदार की सूरत 'अख़्तर' को न रास आया कभी मौसम-ए-हिज्राँ फिर भी है रवाँ लम्हा-ए-बेदार की सूरत