इश्क़ की राहों पे चलना है तो रुस्वाई न देख तुझ को पानी में उतरना है तो गहराई न देख देखना ये है पस-ए-पर्दा मुलव्विस कौन है पाँव में किस शख़्स ने ज़ंजीर पहनाई न देख पढ़ सके तो पढ़ हिकायात-ए-ग़म-ए-वारफ़्तगाँ धूप में झुलसे हुए चेहरों पे रानाई न देख ख़ार-ज़ारों से गुज़र जा तू बिला ख़ौफ़-ओ-ख़तर ऐ मुसाफ़िर हर जगह रस्म-ए-शनासाई न देख तुझ को मंज़िल की तलब है तो क़दम आगे बढ़ा इस सफ़र में हम-सफ़र कोई मिरे भाई न देख सामने आ गुफ़्तुगू का हौसला रखता हूँ मैं मेरी सूरत पर न जा ज़ख़्म-ए-शनासाई न देख ख़ुद न बन 'अख़्तर' तमाशा इस तमाशा-गाह में देख अपने आप को ज़र्फ़-ए-तमाशाई न देख