इरफ़ान है ये इश्क़ के सोज़-ओ-गुदाज़ का पर्दा उठा रहा है कोई इम्तियाज़ का तारों से पूछिए मिरी आँखों को देखिए दुनिया को क्या पता शब-ए-हिज्र-ए-दराज़ का जाने से क़ब्ल तूर पे मूसा ये देखते क्या ज़र्फ़ है हवास तजल्ली-नवाज़ का सब सुर्ख़ियाँ हैं ख़ून-ए-वफ़ा सी लिखी हुई क़िस्सा है दिल-गुदाज़ शहीद-ए-नियाज़ का सर बे-ख़ुदी में आप के क़दमों पे झुक गया आया था कुछ ख़याल सा दिल में नमाज़ का आँखें झुका नज़र न मिला दिल पे तीर खा पहला सबक़ है इश्क़ के राज़-ओ-नियाज़ का महफ़िल में देखते हैं वो तस्वीर की तरह मरकज़ है हर नफ़स निगह-ए-इम्तियाज़ का देखा फिर उस ने क़ल्ब की फिर हरकतें बढ़ीं ज़ख़मा बनी है फिर निगह-ए-नाज़ साज़ का ज़र्फ़ आज़माए सोज़िश-ए-सद-बर्क़-ए-तूर से लीजे न इम्तिहान दिल-ए-बे-नियाज़ का 'तालिब' अगर नज़र न हो पामाल-ए-ख़्वाहिशात हर लमआ बर्क़-ए-तूर है हुस्न-ए-मजाज़ का