इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता कोई नींद मिसाल नहीं बनती कोई लम्हा ख़्वाब नहीं होता इक उम्र नुमू की ख़्वाहिश में मौसम के जब्र सहे तो खुला हर ख़ुशबू आम नहीं होती हर फूल गुलाब नहीं होता इस लम्हा-ए-ख़ैर-ओ-शर में कहीं इक साअत ऐसी है जिस में हर बात गुनाह नहीं होती सब कार-ए-सवाब नहीं होता मिरे चार तरफ़ आवाज़ें और दीवारें फैल गईं लेकिन कब तेरी याद नहीं आती और जी बे-ताब नहीं होता यहाँ मंज़र से पस-ए-मंज़र तक हैरानी ही हैरानी है कभी अस्ल का भेद नहीं खुलता कभी सच्चा ख़्वाब नहीं होता कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता मिरी बातें जीवन सपनों की मिरे शेर अमानत नस्लों की मैं शाह के गीत नहीं गाता मुझ से आदाब नहीं होता