इस अदा से कोई आया बाम पर हो गया धोका सहर का शाम पर हम से क्या देखा जो पर्दा कर लिया हर्फ़ आया आशिक़ों के नाम पर अह्द कर के आप ही जब फिर गए ज़ोर क्या है गर्दिश-ए-अय्याम पर शादी-ए-बे-मा'नी बे-इल्लत नहीं मर-मिटा हूँ फिर किसी गुलफ़ाम पर किस को समझा हूँ तिरी पहली नज़र मिट रहा हूँ लज़्ज़त-ए-आलाम पर मर गया सुन कर नवेद-ए-वस्ल-ए-यार रहमत-ए-हक़ 'मैकश'-ए-नाकाम पर