जबीं पे उन की ये बिंदी का दाग़ क्या कहिए है आफ़्ताब की ज़ीनत चराग़ क्या कहिए हर इक अदा तिरी क़ातिल है सारे आलम की कहाँ लगाइए अपना सुराग़ क्या कहिए मुहाल जान रहा हूँ तिरा हुसूल मगर है तेरे इश्क़ से दिल बाग़ बाग़ क्या कहिए पड़ेगी किस पे कि तुझ पर ही ख़ुद नहीं पड़ती तिरी निगाह का काफ़िर दिमाग़ क्या कहिए तिरी निगाह के मदहोश तेरे 'मैकश' से हदीस-ए-जाम-ओ-लब-ए-जूए-ए-बाग़ क्या कहिए