इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है By Ghazal << क्या चाहा था क्या सोचा था... ऐ रह-ए-हिज्र-ए-नौ-फ़रोज़ ... >> इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है दिल में उस की याद शायद आज भी मौजूद है वक़्त की वहशी हवा क्या क्या उड़ा कर ले गई ये भी क्या कम है कि कुछ उस की कमी मौजूद है कौन जाने आने वाले पल में ये भी हो न हो धूप के हमराह ये जो छाँव सी मौजूद है Share on: