क्या चाहा था क्या सोचा था क्या गुज़री क्या बात हुई दिल भी टूटा घर भी छूटा रुस्वाई भी साथ हुई वो क्या जाने उस से बिछड़ के हम पर क्या क्या गुज़री है सहरा जैसा दिन का आलम पर्बत जैसी रात हुई उस के ख़त को कैसे पढ़ूँ मैं सारे लफ़्ज़ तो भीगे हैं मेरी छत पर बादल छाए उस के घर बरसात हुई यूँ खोए हम याद में उस की गोया ख़ुद को भूल गए किसी ख़बर है कब दिन निकला किसे पता कब रात हुई दिल के प्यासे आँगन में कल याद के बादल यूँ आए देर तलक ये तन-मन भीगा बे-मौसम बरसात हुई