इस बहस में क्या पड़ना किसे भूल गए हैं हम दश्त में कब पेड़ हुए भूल गए हैं कुछ क़ाबिल-ए-रश्क अपनी मोहब्बत भी नहीं थी कुछ शोहरत-ए-दौराँ से डरे भूल गए हैं मैं गर्द को ओढ़े हुए मुद्दत से पड़ा हूँ वो हाथ कहीं रख के मुझे भूल गए हैं अस्बाक़ तिरे याद हैं एहसान भी सारे जा गर्दिश-ए-अय्याम तुझे भूल गए हैं अब ज़ख़्म को ताज़ा कोई रक्खे भी तो क्यूँकर अब याद भी क्या करना जिसे भूल गए हैं हम लम्बी मसाफ़त में किसी हाथ से छूटे हम लोग कहाँ किस को मिले भूल गए हैं हम ज़ंग-ज़दा क़ुफ़्ल की तमसील थे 'साबिर' कब कैसे किसी दिल में पड़े भूल गए हैं