दुआ तो रहती है दस्त-ए-दुआ' नहीं रहता सो तय हुआ मिरे घर में ख़ुदा नहीं रहता मैं ऐसे दश्त को आबाद करने वाला हूँ जहाँ पे कोई भी जुगनू दिया नहीं रहता तू ऐसे दर पे खड़ा है क़सम इसी दर की कोई भी शख़्स यहाँ पर खड़ा नहीं रहता बिछड़ने वाला मिरा हाथ थाम कर बोला कोई मकीं किसी घर में सदा नहीं रहता अजीब ख़ौफ़ है जिस का वजूद है ही नहीं किसी भी घर का दरीचा खुला नहीं रहता हज़ार दिल को लुभाते हसीन मंज़र हैं कोई भी ज़ख़्म यहाँ पर हरा नहीं रहता सरा-ए-दिल का है दस्तूर इस जगह 'साबिर' किसी के होते हुए दूसरा नहीं रहता