इस बरस फ़स्ल-ए-बहाराँ की तरह वापस आ तो मिरी जान है जानाँ की तरह वापस आ मुंतज़िर कब से है तारों का समुंदर तेरा शाम से शहर-ए-निगाराँ की तरह वापस आ इस तरह आ कि अँधेरों में उजाला जागे एक शब शम-ए-फ़रोज़ाँ की तरह वापस आ फूल बन जाएँगी सूरज की दहकती किरनें दश्त में रंग-ए-गुलिस्ताँ की तरह वापस आ इस से पहले कि गुरेज़ाँ हों ये ख़ुश्बू लम्हे तू मिरे अहद-ए-गुरेज़ाँ की तरह वापस आ आ कि हम ढूँढ लें अश्कों में हँसी के लम्हे तू भी इस गर्दिश-ए-दौराँ की तरह वापस आ तुझ पे लाज़िम है वफ़ाओं का भरम रख लेना भूले-बिसरे किसी पैमाँ की तरह वापस आ कौन सुनता है वहाँ तेरी सदाएँ 'मीना' अपने घर शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह वापस आ