इस बे-क़रार दिल को मिरे तू क़रार दे उजड़ी हुई ख़िज़ाँ में तू फ़स्ल-ए-बहार दे पहुँची है मेरी प्यास की शिद्दत उरूज पर लिल्लाह मेरे लब पे तू कौसर उतार दे हो जाऊँ मैं वजूद से वाबस्ता इस क़दर तेरी ख़ुशी में ग़म में ख़ुदा इख़्तियार दे बिखरी हुई हयात है अपनी भी ऐ सनम आकर मिरी हयात को अब तू सँवार दे हँस कर के टाल दूँ मैं मोहब्बत का हर सितम वो हौसला मुझे मिरे परवरदिगार दे मजनूँ के जैसा हो गया अब तो 'अनीस-क़ल्ब’ आकर मुझे सुकून दे मुझ को क़रार दे