इस चश्म-ए-नम से मंज़र-ए-हैराँ चला गया ख़्वाबों का इक जहान-ए-गुलिस्ताँ चला गया शहरों में आ के बस गए हैवान जिस घड़ी ग़ारों में फिर से आज इंसाँ चला गया कुछ वसवसों में ऐसे कटी उम्र-ए-बे-अमाँ इस ज़िंदगी से रिश्ता-ए-ईक़ाँ चला गया शर्तों पे आज-कल तो निभाते हैं आशिक़ी तब ही तो चाहतों से ये पैमाँ चला गया ज़ाहिद की कुछ हिकायतें सुन कर लगा मुझे बस दीन रह गया यहाँ ईमाँ चला गया ये धड़कनें तुम्हारी तो 'सीमा' फ़रेब हैं दिल से अगर जो जज़्बा-ए-एहसाँ चला गया