इस दौर में तौफ़ीक़-ए-अना दी गई मुझ को किस जुर्म की आख़िर ये सज़ा दी गई मुझ को मैं ने जो किया फ़स्ल-ए-बहाराँ का तक़ाज़ा इक फूल की तस्वीर दिखा दी गई मुझ को ये कौन मिरे नाम को दोहरा सा रहा है शायद किसी गुम्बद में सदा दी गई मुझ को वो उन का मिलाना मुझे इक साहब-ए-ज़र से औक़ात मिरी याद दिला दी गई मुझ को पहले तो नवाज़ा गया मैं ख़िलअत-ए-ग़म से फिर शहरियत-ए-मुल्क-ए-वफ़ा दी गई मुझ को हैरत है कि इस बार बुज़ुर्गों की तरफ़ से तकमील-ए-मोहब्बत की दुआ दी गई मुझ को कुछ नामा लिखे ही थे अभी मेरे क़लम ने काग़ज़ की तरह आग लगा दी गई मुझ को गुम हो गया मस्ती में तड़पने का मज़ा भी क्या चीज़ 'क़तील' आज पिला दी गई मुझ को