इस दिल को क्या कहें कि जिधर था उधर न था था जिस पे ए'तिबार वही मो'तबर न था थे राह में हज़ार कोई राह पर न था हमराह तो बहुत थे कोई हम-सफ़र न था अहल-ए-हवस तमाम थे आग़ोश वा किए पर अपनी तरह एक भी सीना-सिपर न था पर्वाज़ थी फ़ज़ा-ए-ज़मान-ओ-मकाँ से दूर मैं बे-नियाज़-ए-दहर था बे-बाल-ओ-पर न था हर-सू बसी हुई थी मगर ढूँडते कहाँ ख़ुश्बू का कोई रंग न था कोई घर न था अपनी ही कुछ कमी थी जो नाकाम हम हुए दिल कार-बन्द-ए-शौक़ तो था कार-गर न था 'बाक़र' हवा-ए-शौक़ उड़ाए फिरी मुझे मैं ख़ानुमाँ-ख़राब सही दर-ब-दर न था