रात हुई फिर हम से इक नादानी थोड़ी सी दिल सरकश था कर बैठा मन-मानी थोड़ी सी थोड़ी सी सरशारी ने दी गहरी धुँद में राह बहम हुई आँखों को तब आसानी थोड़ी सी बिछड़ा वो तो लौट आने की राह न खोटी की कुंज में दिल के छोड़ गया वीरानी थोड़ी सी या-रब फिर से भेज तिलिस्म-ए-होश-रुबा कोई वक़्त अता कर फिर हम को हैरानी थोड़ी सी हम ऐसे बे-माया कब थे हाथों-हाथ बिकें बाज़ारों तक ले आई अर्ज़ानी थोड़ी सी नई ग़ज़ल का रूप नया हो लेकिन ऐसा हो ग़ज़लों में हो आईना-सामानी थोड़ी सी उस के चाल-चलन पर मत जा यार 'मुजीबी' तू यूँ भी जवानी होती है दीवानी थोड़ी सी