इस जिस्म की है पाँच अनासिर से बनावट अक़्ल-ओ-दिल-ओ-पिंदार की सारी है बुनावट हैं हाफ़िज़ा इदराक तमीज़ और तख़य्युल अफ़आ'ली-ओ-इल्मी ख़मसात उस की सजावट ता'मीर जिन अज्ज़ा से हुई ख़ाना-ए-तन की है जान से उन सब की नुमूदार दिखावट आते हुए इस तन में न जाते हुए तन से है जान-ए-मकीं को न लगावट न रुकावट इंसाफ़ की मीज़ाँ में उसे तोल तो 'साहिर' सब सच है नहीं झूट की कुछ उस में मिलावट