इस क़दर ज़ुल्म-ओ-सितम ऐ सितम-ईजाद न कर ख़ाक हम ख़ाक-नशीनों की तू बर्बाद न कर इश्क़ उन का मिरे पहलू में ये देता है सदा भूल जा अपनी ख़ुदी ग़ैर को भी याद न कर सब्र लाज़िम है तुझे कोह-ए-मोहब्बत पे ज़रूर जज़्ब-ए-दिल को तू कहीं तेशा-ए-फ़र्हाद न कर शो'ला-ए-हिज्र से ख़ूँ ख़ुश्क हुआ है उस का रग-ए-आशिक़ पे सितम नश्तर-ए-फ़स्साद न कर क़ैद-ए-ग़म से कहीं आज़ाद भी हो जान-ए-हज़ीं क़त्ल करने में ताम्मुल मिरे जल्लाद न कर फ़स्ल-ए-गुल आई है शादाब हुआ है गुलशन बुलबुल-ए-ज़ार तू याँ शेवन-ओ-फ़र्याद न कर जज़्ब-ए-दिल साथ 'जमीला' का नहीं छोड़ेगा ग़म नहीं ख़िज़्र रह-ए-इश्क़ में इमदाद न कर