इस क़दर महव हैं कार-ए-चमन-आराई में हम दिल की धड़कन भी नहीं सुनते हैं तन्हाई में हम ढूँडते फिरते हैं अब अपने तअल्लुक़ का सबब दूर तक बिखरे हुए राह-ए-शनासाई में हम शाम की धुंद में करते हैं तसव्वुर उस का और फिर सर्फ़ भी होते हैं पज़ीराई में हम दिल की तन्हाई से घबरा के निकल आते हैं वर्ना रहते हैं इसी दश्त की पहनाई में हम शेर के मोती उठा लाए हैं तह से 'आमिर' दूर तक उतरे थे इस बहर की गहराई में हम