इस ख़िज़ाँ की रुत में अपना साथ अच्छा रह गया सब पराए हो गए इक मैं ही अपना रह गया ज़िंदगी हमवार थी तो साथ था अम्बोह एक ज़िंदगी के मोड़ पर पहुँचा तो तन्हा रह गया कल सजा था जिन के चेहरों पर मोहब्बत का नक़ाब कितनी हैरत से उन्हें मैं आज तकता रह गया एक साया था चला सुब्ह-ए-अज़ल मुझ से तवील आफ़तों का आफ़्ताब आया तो छोटा रह गया वो ज़माना था कभी कि था हुजूम इक सुब्ह ओ शाम याद था सब कुछ हमें बस याद इतना रह गया जो किसी के जिस्म का कल तक रहा था इक लिबास अब अलाहिदा यूँ हुआ कि कोई नंगा रह गया हर हसीं चेहरे पे जम कर रह गई मौसम की गर्द हर हसीं चेहरा मिरे अल्बम का धुँदला रह गया मैं भला कैसे करूँ पाबंदी-ए-अहल-ए-फ़रेब मस्लहत में डूब कर कैसे वो सच्चा रह गया जब हुई है ग़म की यूरिश हर तरफ़ से बे-हिसाब मैं ने ख़ुशियाँ बाँट दीं और ख़ुद निहत्ता रह गया हर कोई तर्क-ए-तअल्लुक़ पर मुसिर है अब 'ख़याल' आ मिरे दिल तू भी आ जा किस का धड़का रह गया