शायद कोई कमी मेरे अंदर कहीं पे है मैं आसमाँ पे हूँ मिरा साया ज़मीं पे है अफ़्साना-ए-हयात का हर एक सानेहा तहरीर हर्फ़ हर्फ़ हमारी जबीं पे है दरिया में जिस तरह से हो माही उसी तरह मैं हूँ जहाँ पे मेरा ख़ुदा भी वहीं पे है जन्नत ख़ुदा ही जाने कहाँ है कहाँ नहीं मुझ को यक़ीन है कि जहन्नम यहीं पे है यूँ जी रहे हैं सख़्त अज़िय्यत के बावजूद दार-ओ-मदार ज़ीस्त का जैसे हमीं पे है इस तरह फ़ासलों पे फ़तह पा चुके हैं हम इक पाँव आसमान पे है इक ज़मीं पे है 'शादाब' हुस्न-ओ-इश्क़ मसावी हैं आज-कल इल्ज़ाम मुझ पे है वही उस नाज़नीं पे है