इस ख़राबे में कहीं हैं हम भी By Ghazal << कभी तो इस आब-ओ-हवा को बदल... गली गली तिरी शोहरत नहीं क... >> इस ख़राबे में कहीं हैं हम भी बे-ख़बर देख यहीं हैं हम भी तेरे होने से तमाशा सारा तू नहीं है तो नहीं हैं हम भी हर्फ़ लिक्खे हैं लहू से अपने हो बशारत कि कहीं हैं हम भी वो भी आशुफ़्ता-सरी की ज़द पर इक तबीअ'त के नहीं हैं हम भी Share on: