इस लताफ़त से नवा-पर्दाज़ होना चाहिए सोज़ के पर्दे में पिन्हाँ साज़ होना चाहिए यूँ तख़य्युल को फ़लक-पर्वाज़ होना चाहिए बारयाब-ए-जल्वा-गाह-ए-नाज़ होना चाहिए छा रहा है बज़्म-ए-आलम पर सुकूत-ए-नारवा इक इशारा ऐ निगाह-ए-नाज़ होना चाहिए इस तरह कहिए फ़साना रब्त-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का हर-नफ़स सरमाया-दार-ए-राज़ होना चाहिए आज आता है ज़बाँ पर क़िस्सा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अहल-ए-दिल को गोश-बर-आवाज़ होना चाहिए हुस्न-ए-काफ़िर-साज़ है ग़ारत-गर-ए-दुनिया-ओ-दीं इश्क़-ए-हक़-आगाह को दम-साज़ होना चाहिए लाएक़-ए-सद-नाज़ है 'नय्यर' नियाज़-ए-आशिक़ी अपनी क़िस्मत पर मुझे भी नाज़ होना चाहिए