जो मैं ने हुस्न को सज्दा किया क्यों ख़ल्क़ हैराँ है मोहब्बत मेरा मज़हब है मोहब्बत मेरा ईमाँ है मोहब्बत एक तूफ़ान और हैबतनाक तूफ़ाँ है कि जिस की इब्तिदा में इंतिहा का जोश पिन्हाँ है तअज्जुब है कि ये दुनिया मुझे काफ़िर समझती है नहीं मालूम उसे शायद मोहब्बत ऐन ईमाँ है कहानी है कहानी ही सही अफ़्साना-ए-उल्फ़त मगर ये वो कहानी है हक़ीक़त जिस में पिन्हाँ है जहाँ को दर्स-ए-इबरत है मेरा ज़ौक़-ए-वफ़ादारी मैं उस का दोस्त बनता हूँ जो मेरा दुश्मन-ए-जाँ है भला देखा भी है मरते किसी को वक़्त से पहले हक़ीक़त में क़ज़ा ही ज़िंदगानी की निगहबाँ है