इस लिए ग़म से अपनी यारी है चीज़ बख़्शी हुई तुम्हारी है जो तिरी याद में गुज़ारी है बस वही ज़िंदगी हमारी है दिल में उस को ज़रा समाने दो इश्क़ को तो हयात सारी है चाँद देखा तो यूँ लगा जैसे शक्ल तो हू-ब-हू तुम्हारी है दिल के अरमान रह गए दिल में बे-क़रारी सी बे-क़रारी है फेर ली है निगाह क्या तुम ने ज़िंदगी पर सुकूत तारी है अच्छा लगता है हारना उन से जीती-बाज़ी भी हम ने हारी है कोई हमदर्द है न है साथी ये भी क्या ज़िंदगी हमारी है दास्ताँ मेरी सुन के वो बोले कितनी दिलचस्प कितनी प्यारी है जितनी चाहो समेट लो 'रामिश' उस की रहमत का फ़ैज़ जारी है