कितना रौशन तिरा शबाब हुआ जल्वा मानिंद-ए-आफ़्ताब हुआ अब तो दिल को ज़रा क़रार नहीं दिल लगाना भी इक अज़ाब हुआ बैठ कर अब मुहासबा करना तुम से कितना गुनह सवाब हुआ लम्स पाते ही उन के होंटों का था जो पानी वही शराब हुआ होंट अपने हैं दाँत भी अपने जाने दो जो हुआ जनाब हुआ ज़ख़्म उस ने हमें दिए इतने उस का अब तक न कुछ हिसाब हुआ जो न भाता था एक पल 'रामिश' वही लाखों में इंतिख़ाब हुआ