इस लिए मिलता है वो माह-ए-लक़ा तीसरे दिन रुख़ बदलती है ज़माने की हवा तीसरे दिन नुस्ख़े पर नुस्ख़े बदल कर मुझे कहते हैं तबीब अपनी तासीर दिखाती है दवा तीसरे दिन बाद दो रोज़ के है अपना लहू मुझ को मुबाह फ़ाक़ा-कश को हुआ मुर्दार रवा तीसरे दिन आख़िरश रोज़ है क्यों मर्ग-ए-अदू का मातम सोग को देते हैं दुनिया में बढ़ा तीसरे दिन ऐ ग़म-ए-यार मिरे दिल में ठिकाना कब तक साहब-ए-ख़ाना को मेहमाँ है बला तीसरे दिन जंग के बाद अगर सुल्ह न हो सद-अफ़्सोस चाहिए क़ल्ब-ए-मुकद्दर हो सफ़ा तीसरे दिन रही हर लहज़ा हमारी तप-ए-ग़म में शिद्दत ज़ोर हर एक मरज़ का है घटा तीसरे दिन दस्त-ओ-पा सुर्ख़ किया कीजिए मेरे ख़ून से उड़ने लगता है सदा रंग सदा तीसरे दिन इश्क़ का जिन ही न लेकिन मिरे सर से उतरा रोज़ चाटा कभी तावीज़ पिया तीसरे दिन लिल्लाह अल-हम्द वो आया है सोएम में मेरे मेरे मातम में वो शामिल तो हुआ तीसरे दिन 'सब्र' हंगाम-ए-तलब शर्त है निय्यत में ख़ुलूस जाएगी बाब-ए-इजाबत पे दुआ तीसरे दिन