इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं पलकें हैं जिस की छुरियाँ आँखें कटारियाँ हैं इस बात पर भला हम क्यूँकर न ज़हर खावें हम से वही रुकावट ग़ैरों से यारियाँ हैं टुक सफ़्हा-ए-ज़मीं के ख़ाके पे ग़ौर कर तू सानेअ' ने इस पे क्या क्या शक्लें अतारियाँ हैं दिल की तपिश का अपनी आलम ही कुछ जुदा है सीमाब ओ बर्क़ में कब ये बे-क़रारियाँ हैं उन महमिलों पे आवे मजनूँ को क्यूँ न हसरत जिन महमिलों के अंदर दो दो सवारियाँ हैं जागा है रात प्यारे तू किस के घर जो तेरी पलकें नदीदियाँ हैं आँखें ख़ुमारियाँ हैं नौमीद हैं ब-ज़ाहिर गो वस्ल से हम उस के दिल में तो सौ तरह की उम्मीदवारियाँ हैं क्या पूछता है हमदम अहवाल 'मुसहफ़ी' का रातें अंधेरियाँ और अख़्तर-शुमारियाँ हैं