गुज़रा बना-ए-चर्ख़ से नाला पगाह का ख़ाना-ख़राब हो जियो इस दिल की चाह का आँखों में जी मिरा है उधर देखता नहीं मरता हूँ में तो हाए रे सर्फ़ा निगाह का सद ख़ानुमाँ-ख़राब हैं हर हर क़दम पे दफ़न कुश्ता हूँ यार मैं तो तिरे घर की राह का यक क़तरा ख़ून हो के पलक से टपक पड़ा क़िस्सा ये कुछ हुआ दिल ग़फ़राँ-पनाह का तलवार मारना तो तुम्हें खेल है वले जाता रहे न जान कसो बे-गुनाह का बद-नाम-ओ-ख़ार-ओ-ज़ार-ओ-नज़ार-ओ-शिकस्ता-हाल अहवाल कुछ न पोछिए उस रू-सियाह का ज़ालिम ज़मीं से लौटता दामन उठा के चल होगा कमीं में हाथ कसो दाद-ख़्वाह का ऐ ताज-ए-शह न सर को फ़रव लाऊँ तेरे पास है मो'तक़िद फ़क़ीर नमद की कुलाह का हर लख़्त-ए-दिल में सैद के पैकान भी गए देखा मैं शोख़ ठाठ तिरी सैद-ए-गाह का बीमार तू न होवे जिए जब तलक कि 'मीर' सोने न देगा शोर तिरी आह आह का