इस साया-दार पेड़ को जड़ से उखाड़ के क्या मिल गया तुझे मिरी दुनिया उजाड़ के अब और इंतिज़ार कर ऐ खोखले बदन मैं आ रहा हूँ मद्द-ए-मुक़ाबिल पछाड़ के तन्हा मुझे बसीत ख़ला में उड़ा दिया हम-ज़ाद ने बयाज़-ए-तसलसुल से फाड़ के क्यूँ चाँद की तरफ़ हैं रवाँ कम-निगाह लोग दिल की रिदा से अज़्मत-ए-पस्ती को झाड़ के इस ख़ुद-नुमा की रिफ़अ'त-ए-बुनियाद देखिए पाँव ज़मीन-बोस हैं ऊँचे पहाड़ के शोहरत की आग अस्ल में इक नक़्श-ए-दूद थी बुझ कर बिखर गई तिरा हुलिया बिगाड़ के