ख़ानों में ख़ुद ही बट के अब इंसान रह गया देखा जब अपना हश्र परेशान रह गया पुरखों की शानदार हवेली का ज़िक्र छोड़ आबाद कर खंडर को जो वीरान रह गया गर्द-ए-सफ़र में फूल से चेहरे उतर गए आईना उन को देख के हैरान रह गया दिल भर गया है अपना मसाफ़त के शौक़ में मंज़िल है दूर रस्ता भी सुनसान रह गया हम जागते थे मद्द-ए-मुक़ाबिल रहे मगर ख़ामोश इंक़लाब था तूफ़ान रह गया किस ने दिया था सुल्ह-ओ-सफ़ाई का मशवरा बस्ती में हो के जंग का एलान रह गया क़िस्मत का है ज़वाल कि मेहनत की है कमी हम ने किया जो काम भी नुक़सान रह गया हम ने दिया था ख़ून भी उस के लिए मगर वो मर गया ग़रीब का एहसान रह गया 'नय्यर' ने सादगी से गुज़ारी है ज़िंदगी मक्कारियों से अपनों की अंजान रह गया