इस शहर में निशाना-ए-क़ातिल हमी तो हैं कुछ जाबिरों की राह में हाइल हमी तो हैं जो बेचने चले हैं मता-ए-बहार को उन दुश्मनों के मद्द-ए-मुक़ाबिल हमी तो हैं गुल-कारी-ए-चमन में हमारा लहू भी है रंगीनी-ए-बहार में शामिल हमी तो हैं जो दौलत-ए-हुनर के तलबगार हैं अभी ऐ रब्ब-ए-हर्फ़-ओ-सौत वसाएल हमी तो हैं जो खो गए हैं पेच-ओ-ख़म-ए-रहगुज़ार में उन सब के मुंतज़िर सर-ए-मंज़िल हमी तो हैं इक उम्र से हैं हल्क़ा-ए-गिर्दाब में घिरे ना-आश्ना-ए-क़ुर्बत-ए-साहिल हमी तो हैं हम ही से है ये रौनक़-ए-बज़्म-ए-हयात भी इस कारोबार-ए-वक़्त का हासिल हमी तो हैं उस ने अता किया है ग़म-ए-दो-जहाँ हमें उस की नवाज़िशात के क़ाबिल हमी तो हैं हम-राहयान-ए-जादा-ए-दुनिया से क्या गिला 'शाहिद' ख़ुद अपनी ज़ात से ग़ाफ़िल हमी तो हैं