इस तग-ओ-दौ ने आख़िरश मुझ को निढाल कर दिया जीने के एहतिमाम ने जीना मुहाल कर दिया अब हम असीर-ए-ज़ुल्फ़ हैं किस के किसी को क्या ग़रज़ उस ने तो अपनी क़ैद से हम को बहाल कर दिया बज़्म-ए-तरब सजाएँ क्या अब हम हँसें हँसाएँ क्या तुम ने तो हम को जान-ए-जाँ वक़्फ़-ए-मलाल कर दिया शेर ओ सुख़न का इक हुनर रखते थे हम सो शुक्र है कुछ दिल की बात कह सके कुछ अर्ज़-ए-हाल कर दिया कुछ इश्क़ विश्क़ हो गया कुछ शेर वेर कह लिए करने का कोई काम तो 'राशिद' जमाल कर दिया