इस तरह फूट के रोया कोई बे-कसों का नहीं गोया कोई शोर से गूँजते सन्नाटों के वा करे क्या लब-ए-गोया कोई संग-दिल जब भी कोई याद आया लग के दीवार से रोया कोई लूट कर भी कोई बेचैन रहा लुट के भी चैन से सोया कोई हश्र-सामाँ हुईं वीराँ आँखें फिर कसी ख़्वाब में खोया कोई ज़ीस्त का दश्त समन-ज़ार हुआ बीज क्या दर्द ने बोया कोई