इस तरह हाजत-ए-असीर न खींच भीक दे कासा-ए-फ़क़ीर न खींच रहम कर कुछ तो दस्त-ए-मजबूरी जान ले ले मगर ज़मीर न खींच ये कहानी बड़ी मुनाफ़िक़ है इस में यूँही मिरा शरीर न खींच दाएरे शौक़ से बना लेकिन अब कोई ख़ून की लकीर न खींच लफ़्ज़ वापस भी लौट सकते हैं अपने लहजे में कोई तीर न खींच अपना उस्लूब बन सके तो बना शेर में 'ग़ालिब' और 'मीर' न खींच आने वाले सुराग़ चाहते हैं ऐ हवा नक़्श-ए-राहगीर न खींच ये शराफ़त भी एक रस्सी है टूट जाएगी मेरे वीर न खींच