इस तरह से जश्न-ए-शीराज़ा हुआ फिर ग़ज़ल का शेर इक ताज़ा हुआ ख़्वाब कितने भी हसीं हों ख़्वाब हैं नींद से जागे तो अंदाज़ा हुआ सारे ग़म चुप-चाप दाख़िल हो गए दिल में जैसे चोर दरवाज़ा हुआ आबला-पा में थकन यूँ ज़म हुई दर्द जैसे दर्द का ग़ाज़ा हुआ आज फिर मरहम लगाया आप ने आज मेरा ज़ख़्म फिर ताज़ा हुआ नींद की आँखों पे जब दस्तक हुई बंद फिर पलकों का दरवाज़ा हुआ ज़िंदगी जीना भी 'ख़ालिद' आज-कल जैसे इन साँसों का ख़म्याज़ा हुआ