सूरज सर के ऊपर है क़दमों में अपना सर है आँखें नम दामन तर है दिल की प्यास समुंदर है हंगामा सब अंदर है मंज़र फिर भी मंज़र है चीख़ते दरियाओं का जुनूँ अपनी हद से बाहर है फ़ितरत का है सेहर कि दिल आईना है पत्थर है हम भी एक परिंदे हैं बर्ग-ए-शजर अपना घर है इज़्ज़त शोहरत रुस्वाई जो भी है जुरअत भर है दिल में उठे क्या लहर 'अयाज़' ये भी ख़ुश्क समुंदर है