इस तरह तिरे हिज्र का ग़म तोड़ गया है जैसे किसी बेकस को सितम तोड़ गया है तब्दील न हो पाएगा अब फ़ैसला उस का मुंसिफ़ की तरह वो भी क़लम तोड़ गया है शायद ही किसी और पे अब होगा भरोसा इक शख़्स मोहब्बत का भरम तोड़ गया है इक धुन पे था रक़्साँ मिरी साँसों का तसलसुल पर कोई अचानक से रिधम तोड़ गया है