'इश्क़ दो टुकड़ों में कर के ऐसे पूरा कर दिया बन गया घनश्याम ख़ुद और उस को राधा कर दिया ख़ामुशी की चीख़ से जब दम मिरा घुटने लगा इज़्तिराब-ए-दिल ने इक हंगामा बरपा कर दिया रास्तों की भीड़ में हो मुनफ़रिद रस्ता मिरा बस इसी चाहत ने मुझ को आज तन्हा कर दिया डाल रक्खा था जुनूँ ने अपने चेहरे पर नक़ाब 'इश्क़ ने उस को हटाया और तमाशा कर दिया गर्दिश-ए-अफ़्लाक के साए थे मुझ पे इक सितम जब कभी डूबा ये सूरज ज़ख़्म गहरा कर दिया