इसे कहते हैं अपनी ज़ात में मस्तूर हो जाना तिरे नज़दीक आना और ख़ुद से दूर हो जाना इलाज-ए-तिश्नगी ये है कि आँसू पी लिए जाएँ किसी मय-कश का जैसे बे-पिए मख़मूर हो जाना हमारा इख़्तियार-ए-बे-तलब जब्र-ए-मशिय्यत है वफ़ा के सिलसिले में फ़ितरतन मजबूर हो जाना करिश्मा है ये हक़-गोई का वर्ना कैसे मुमकिन था मिरे दिल का अमीन-ए-अज़्मत-ए-मंसूर हो जाना किसी शय की कभी फ़ितरत न बदली है न बदलेगी कि जैसे नार का मुमकिन नहीं है नूर हो जाना अगर दुनिया में ग़म ही दाइमी शय है तो फिर यारो अबस है चंद लम्हों के लिए मसरूर हो जाना मिज़ाज-ए-आशिक़ी का ये अजब अंदाज़ देखा है तुम्हारा मुस्कुराना दर्द का काफ़ूर हो जाना ख़ुलूस-ए-बाहमी दरकार है हस्ती की राहों में कोई मुश्किल नहीं है ज़ंग दिल से दूर हो जाना ये एहसास-ए-नदामत है 'सिराज' अपने गुनाहों पर कभी रंजूर हो जाना कभी मसरूर हो जाना