इसे सौदा उसे सौदा ये दीवाना वो दीवाना हवा क्या मौसम-ए-गुल की जुनूँ-अंगेज़ होती है अरे कम-बख़्त इंकार और मय से मौसम-ए-गुल में बुरी इतनी भी ज़ाहिद आदत-ए-परहेज़ होती है छुरी से पहले मुझ को तेरे ग़म्ज़े मार डालेंगे कब आएगी अरे जल्लाद कब से तेज़ होती है 'मुबारक' भी इसी ख़ाक-ए-अज़ीम-आबाद से उट्ठा सलामत वो ज़मीं या-रब जो मर्दुम-ख़ेज़ होती है